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hartalika teej vrat katha 2024: हरतालिका तीज पर जरूर करें इस कथा का पाठ, मिलेगा सुख और सौभाग्य।

hartalika teej vrat katha 2024: हरतालिका तीज पर जरूर करें इस कथा का पाठ, मिलेगा सुख और सौभाग्य।

hartalika teej vrat katha 2024: हरतालिका तीज पर जरूर करें इस कथा का पाठ, मिलेगा सुख और सौभाग्य।
hartalika teej vrat katha 2024: हरतालिका तीज पर जरूर करें इस कथा का पाठ, मिलेगा सुख और सौभाग्य।

सनातन धर्म में कुंवारी लड़कियां और सुहागिन महिलाएं कई तरह के व्रत करती हैं। इनमें हरतालिका तीज का व्रत भी शामिल है। इस व्रत को सुहागिन महिलाएं सुख-समृद्धि और सौभाग्य की कामना के लिए करती हैं। वहीं कुवांरी लड़कियां मनचाहे वर की प्राप्ति के लिए व्रत करती हैं। आइए इस लेख में पढ़ते हैं हरतालिका तीज (Hartalika Teej 2024 Katha) की व्रत कथा।

  1. हरतालिका तीज का विशेष महत्व है।
  2. हरतालिका तीज व्रत में कथा का पाठ करना चाहिए।
  3. यह व्रत करने से जल्द विवाह के योग बनते हैं।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Hartalika Teej 2024: सनातन धर्म में कुंवारी लड़कियों और सुहागिन महिलाओं के लिए हरतालिका तीज का विशेष महत्व है। यह व्रत निर्जला किया जाता है। हर साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन हरतालिका तीज का व्रत रखा जाता है। पंचांग के अनुसार, वर्ष 2024 में यह व्रत 06 सितंबर को किया जाएगा।

इस शुभ तिथि पर देवों के देव महादेव और मां पार्वती की पूजा-अर्चना की जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन व्रत कथा का पाठ न करने से साधक शुभ फल की प्राप्ति से वंचित रहता है। इसलिए पूजा के दौरान कथा का पाठ करना न भूलें। आइए पढ़ते हैं हरतालिका तीज (Hartalika Teej 2024 Vrat Katha) की व्रत कथा।

रतालिका तीज व्रत कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, हिमालय राज के परिवार में मां सती ने पुनः शरीर धारण करके मां पार्वती के रूप में जन्म लिया। हिमालय राज ने मां पार्वती की शादी जगत के पालनहार भगवान विष्णु से कराने का निर्णय कर लिया था। परंतु मां पार्वती पूर्व जन्म के प्रभाव की वजह से मन में ही महादेव को अपने पति के रूप में स्वीकार कर चुकी थीं। लेकिन माता सती की मृत्यु के बाद भगवान शिव तपस्या में लीन थे, जिसकी वजह से वह तपस्वी बन गए थे।

माता पार्वती का हरण और तपस्या

मां पार्वती जी की सखियों ने उनका हरण कर लिया। क्योंकि पिता के निश्चय से असमंजस की स्थिति उत्पन्न हो गई थी, जिसके बाद मां पार्वती को हिमालय की कंदराओं में छिपा दिया। इसके बाद मां पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठिन तपस्या की। उनकी तपस्या को देख महादेव प्रसन्न हुए और मां पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार किया।

इसी वजह से कुवांरी लड़कियां मनचाहे वर की प्राप्ति औरसुहागिन महिलाएं अखण्ड़ सौभाग्य पाने के लिए हरतालिका तीज (Hartalika Teej Vrat katha Time) व्रत करती हैं और महादेव के संग मां पार्वती की विशेष पूजा-अर्चना करती हैं।

और अच्छे से जाने-

Hartalika Teej Vrat Katha in Hindi 2024: पति की लंबी उम्र, अच्छे स्वास्थ्य और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए सुहागिन महिलाएं हरतालिका तीज का व्रत रखती हैं। ये व्रत करवा चौथ की तरह की निर्जला रखा जाता है। इस दिन दिनभर निर्जला व्रत रखने के साथ शिव-पार्वती जी की विधिवत पूजा करने का विधान है।

आज हरतालिका तीज पर रवि योग, बुधादित्य योग सहित कई शुभ योगों का निर्माम हो रहा है। आज सुबह शिव-पार्वती की पूजा करने के साथ प्रदोष काल के समय माता पार्वती-शिव जी की की विधिवत पूजा करने के साथ कथा पढ़ने का विशेष महत्व है।

हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरतालिका तीज का व्रत रखा जाता है। इस दिन केले के पत्ते, बंदनवार से एक मंडप तैयार किया जाता है। इसमें मिट्टी से भगवान शिव-पार्वती की मूर्ति बनाकर स्थापित किया जाता है। इसके बाद फूल, माला, चंदन, धूप-दीपक आदि चढ़ाया जाता है।

इसके साथ ही मंत्रों का जाप करने के बाद अंत में हरतालिका तीज का व्रत जरूर करें। अगर आप हरतालिका तीज के दिन व्रत रखने के साथ इस व्रत कथा का पाठ करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। आइए जानते हैं हलतालिका तीज की संपूर्ण व्रत कथा…

हरतालिका तीज व्रत कथा (Hartalika Teej 2024 Vrat Katha)

पौराणिक मान्यता के अनुसार, कैलाश पर्वत में भगवान शिव  माता पार्वती के साथ नंदी और अपने गणों के साथ बैठे हुए थे। इस अवसर में मां पार्वती ने शिव जी से पूछा कि हे महेश्वर मैने वह कौन सा पुण्य किया था जिसके कारण आप मुझे पति के रूप में मिले।

आप तो अंतर्यामी है, तो आप मुझे अवश्य इस बात को बताएं। इस बात को सुनकर शंकर जी कहते हैं कि हे देवी आपने तो अति उत्तम पुण्य का संग्रह किया था, जिससे आपको मैं प्राप्त हुआ था। आपने भादो मास के शुक्ल पक्ष की तीज के नाम में प्रसिद्ध है।

शिव जी ने कहा-हे गौरी! पर्वतराज हिमालय पर स्थित गंगा के तट पर तुमने अपनी बाल्यावस्था में बारह वर्षों तक अधोमुखी होकर घोर तप किया था। इतनी अवधि तुमने अन्न न खाकर पेड़ों के सूखे पत्ते चबा कर व्यतीत किए। माघ की विकराल शीतलता में तुमने निरंतर जल में प्रवेश करके तप किया। वैशाख की जला देने वाली गर्मी में तुमने पंचाग्नि से शरीर को तपाया।

श्रावण की मूसलाधार वर्षा में खुले आसमान के नीचे बिना अन्न-जल ग्रहण किए समय व्यतीत किया। तुम्हारे पिता तुम्हारी कष्ट साध्य तपस्या को देखकर बड़े दुखी होते थे। तब एक दिन तुम्हारी तपस्या को देखकर नारदजी तुम्हारे घर पधारे। तुम्हारे पिता ने हृदय से अतिथि सत्कार करके उनके आने का कारण पूछा। नारदजी ने कहा- गिरिराज! मैं भगवान विष्णु के भेजने पर यहां उपस्थित हुआ हूं।

आपकी कन्या ने बड़ा कठोर तप किया है। इससे प्रसन्न होकर वे आपकी सुपुत्री से विवाह करना चाहते हैं। इस संदर्भ में आपकी राय जानना चाहता हूं।

नारदजी की बात सुनकर गिरिराज गदगद हो उठे। उनके तो जैसे सारे क्लेश ही दूर हो गए। प्रसन्न होकर वे बोले- श्रीमान्! यदि स्वयं विष्णु मेरी कन्या का वरण करना चाहते हैं तो भला मुझे क्या आपत्ति हो सकती है। वे तो साक्षात ब्रह्म हैं। हे महर्षि! यह तो हर पिता की इच्छा होती है कि उसकी पुत्री सुख-सम्पदा से युक्त पति के घर की लक्ष्मी बने। पिता की सार्थकता इसी में है कि पति के घर जाकर उसकी पुत्री पिता के घर से अधिक सुखी रहे।

तुम्हारे पिता की स्वीकृति पाकर नारदजी विष्णु के पास गए और उनसे तुम्हारे ब्याह के निश्चित होने का समाचार सुनाया। मगर इस विवाह संबंध की बात जब तुम्हारे कान में पड़ी तो तुम्हारे दुख का ठिकाना न रहा। तुम्हारी एक सखी ने तुम्हारी इस मानसिक दशा को समझ लिया और उसने तुमसे उस विक्षिप्तता का कारण जानना चाहा।

तब तुमने बताया – मैंने सच्चे हृदय से भगवान शिव शंकर का वरण किया है, किंतु मेरे पिता ने मेरा विवाह विष्णु जी से निश्चित कर दिया। मैं विचित्र धर्म-संकट में हूं। अब क्या करूं? प्राण छोड़ देने के अतिरिक्त अब कोई भी उपाय शेष नहीं बचा है। तुम्हारी सखी बड़ी ही समझदार और सूझबूझ वाली थी।

उसने कहा- सखी! प्राण त्यागने का इसमें कारण ही क्या है? संकट के मौके पर धैर्य से काम लेना चाहिए। नारी के जीवन की सार्थकता इसी में है कि पति-रूप में हृदय से जिसे एक बार स्वीकार कर लिया, जीवनपर्यंत उसी से निर्वाह करें। सच्ची आस्था और एकनिष्ठा के समक्ष तो ईश्वर को भी समर्पण करना पड़ता है।

मैं तुम्हें घनघोर जंगल में ले चलती हूं, जो साधना स्थली भी हो और जहां तुम्हारे पिता तुम्हें खोज भी न पाएं। वहां तुम साधना में लीन हो जाना। मुझे विश्वास है कि ईश्वर अवश्य ही तुम्हारी सहायता करेंगे।

तुमने ऐसा ही किया। तुम्हारे पिता तुम्हें घर पर न पाकर बड़े दुखी तथा चिंतित हुए। वे सोचने लगे कि तुम जाने कहां चली गई। मैं विष्णुजी से उसका विवाह करने का प्रण कर चुका हूं। यदि भगवान विष्णु बारात लेकर आ गए और कन्या घर पर न हुई तो बड़ा अपमान होगा। मैं तो कहीं मुंह दिखाने के योग्य भी नहीं रहूंगा। यही सब सोचकर गिरिराज ने जोर-शोर से तुम्हारी खोज शुरू करवा दी।

इधर तुम्हारी खोज होती रही और उधर तुम अपनी सखी के साथ नदी के तट पर एक गुफा में मेरी आराधना में लीन थीं। भाद्रपद शुक्ल तृतीया को हस्त नक्षत्र था। उस दिन तुमने रेत के शिवलिंग का निर्माण करके व्रत किया। रात भर मेरी स्तुति के गीत गाकर जागीं। तुम्हारी इस कष्ट साध्य तपस्या के प्रभाव से मेरा आसन डोलने लगा। मेरी समाधि टूट गई। मैं तुरंत तुम्हारे समक्ष जा पहुंचा और तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न होकर तुमसे वर मांगने के लिए कहा।

तब अपनी तपस्या के फलस्वरूप मुझे अपने समक्ष पाकर तुमने कहा – मैं हृदय से आपको पति के रूप में वरण कर चुकी हूं। यदि आप सचमुच मेरी तपस्या से प्रसन्न होकर आप यहां पधारे हैं तो मुझे अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार कर लीजिए। तब मैं ‘तथास्तु’ कह कर कैलाश पर्वत पर लौट आया। प्रातः होते ही तुमने पूजा की समस्त सामग्री को नदी में प्रवाहित करके अपनी सहेली सहित व्रत का पारणा किया

उसी समय अपने मित्र-बंधु व दरबारियों सहित गिरिराज तुम्हें खोजते-खोजते वहां आ पहुंचे और तुम्हारी इस कष्ट साध्य तपस्या का कारण तथा उद्देश्य पूछा। उस समय तुम्हारी दशा को देखकर गिरिराज अत्यधिक दुखी हुए और पीड़ा के कारण उनकी आंखों में आंसू उमड़ आए थे।

तुमने उनके आंसू पोंछते हुए विनम्र स्वर में कहा- पिताजी! मैंने अपने जीवन का अधिकांश समय कठोर तपस्या में बिताया है। मेरी इस तपस्या का उद्देश्य केवल यही था कि मैं महादेव को पति के रूप में पाना चाहती थी।

आज मैं अपनी तपस्या की कसौटी पर खरी उतर चुकी हूं। आप क्योंकि विष्णुजी से मेरा विवाह करने का निर्णय ले चुके थे, इसलिए मैं अपने आराध्य की खोज में घर छोड़कर चली आई। अब मैं आपके साथ इसी शर्त पर घर जाऊंगी कि आप मेरा विवाह विष्णुजी से न करके महादेव जी से करेंगे।

गिरिराज मान गए और तुम्हें घर ले गए। कुछ समय के पश्चात शास्त्रोक्त विधि-विधान पूर्वक उन्होंने हम दोनों को विवाह सूत्र में बांध दिया। हे पार्वती! भाद्रपद की शुक्ल तृतीया को तुमने मेरी आराधना करके जो व्रत किया था, उसी के फलस्वरूप मेरा तुमसे विवाह हो सका। इसका महत्व यह है कि मैं इस व्रत को करने वाली कुंवारियों को मनोवांछित फल देता हूं। इसलिए सौभाग्य की इच्छा करने वाली प्रत्येक युवती को यह व्रत पूरी एकनिष्ठा तथा आस्था से करना चाहिए।

अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।

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